जो भी लिखें स्वांतसुखाय नहीं सर्वहिताय एवं सर्वसुखाय लिखे – ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
वैसे तो आप किसी परिचय के मोहताज नहीं है। लेकिन फिर भी हम पाठकों को आप का परिचय हमारे शब्दों में देना चाहते हैं.आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ का जन्म 26 जनवरी 1965 में हुआ. आप ने पांच विषयों में एमए किया है.साथ ही साथ पत्रकारिता की उपाधि प्राप्त की है. आप बालकहानी, लघुकथा और कविता इन विधाओं में निरंतर लेखन करते आ रहे हैं. आप की लेखकोपयोगी सूत्र व १०० पत्र पत्रिकाएं पुस्तक कहानी लेखन महाविद्यालय अंबाला छावनी से प्रकाशित हो चुकी है. कुंए को बुखार, आसमानी आफत, कौन सा रंग अच्छा है?, कांव-कांव का भूत, रोचक विज्ञान बाल कहानियां, चाबी वाला भूत, आदि कृतियां प्रकाशित हो चुकी है. आप की 121 कहानियों का 8 भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है. आप को इंद्रदेव सिंह इंद्र बालसाहित्य सम्मान, स्वतंत्रता सेनानी ओंकारलाल शास्त्री सम्मान, जयविजय सम्मान आदि दर्जनों पुरस्कारों को प्राप्त कर चुके हैं . संप्रति आप मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग के सहायक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं और स्वतंत्र लेखन करते हैं.
बुक क्लिनिक – पहली बार आप को कब लगा कि आप एक लेखक बनना चाहते हैं ? या यूं कहे कि साहित्य के प्रति आपकी रुचि कैसे जागृत हुई?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – बहुत पुरानी बात है. उस समय नईदुनिया, दैनिक भास्कर, चौथासंसार आदि के रविवारीय अंक बाल जगत के रूप में निकला करता था. उस में छोटी-छोटी कविताएं, कहानियां आदि छपा करती थी. उन्हें छपा देख कर मेरी इच्छा भी वैसा ही लिख कर छपने की हुई .
जब मैं नवीं में पढ़ता था तब से कविताएं लिखने लगा था. कविताएं तुकांत होती थी. उन में मात्रा आदि का ध्यान मैं रख नहीं पाता था. वैसी ही चारचार पंक्तियों की शिशु कविताओं से मैं ने शुरुआत की है.यह परिचयात्मक कविताएं उस समय नईदुनिया, चौथासंसार, दैनिक भास्कर आदि में बहुत छपी. आप उसी वक्त से मेरी बाल साहित्य की यात्रा की शुरुआत मान सकते हैं.
बुक क्लिनिक – एक किताब लिखने में आप को कितना समय लगा ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – ये कहना थोड़ा मुश्किल है. इसे यूं कह सकते हैं कि कितने समय में आप बहुत बढ़िया किताब लिख पाए. तब इसे मैं यूं कहूंगा कि मुझे शुरू से ही लिखने का शौक हो रहा था. इसलिए मैं ने विद्यार्थी जीवन के समय मैं ने धर्मयुग में कहानी लेखन महाविद्यालय का विज्ञापन देखा. वहां से लेख—रचना का पाठ्यक्रम किया. वही से लेखन की विधिवत प्रशिक्षण लिया. तब व्यवस्थित लिखना शुरू किया.
इस के बाद खूब लिखा. खूब छपा. मुझे सरिता, मुक्ता, चंपक, बालभारती, नंदन, हंसती दुनिया, गृहशोभा, गृहलक्ष्मी, समझझरोखा, शुभतारिका, यूएसएम पत्रिका, नईदुनिया, दैनिक भास्कर, चौथासंसार आदि अनेक पत्रपत्रिकाओं ने खूब छापा. मेरे कई लेख एक साथ सौ दो सौ पत्रों में छपे थे.
इस कारण मेरे पास बहुत से लेख थे. कई कहानियां थी. इसलिए यह कहना कि कितने दिन में एक पुस्तक लिखी. कह नहीं सकता हूं. मगर, एक बात है. अब मैं एकदो माह में एक पुस्तक जितनी रचनाएं लिख सकता हूं. मगर, इतना ज्यादा लिखने से संतुष्टि नहीं मिलती है. इसलिए वही लिखना चाहिए जिस से मन को संतुष्टि मिलें.
बुक क्लिनिक – जब आप लिखते हैं तब आप का कार्य समय क्या होता है ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – वैसे इस के बारे में तय करना बेमानी है. हरेक रचनाकार का अपना समय और मूड़ होता है. उसी समय व मूड़ पर वह बेहतर लिख सकता हैं. मगर, जहां तक मेरे मूड़ का सवाल है मेरे लिखने का समय अधिकांशत: सुबह होता है. इस समय शरीर और मन — दोनों तरोताजा होते हैं. अधिकांश रचनाकार सुबह या रात की खामोशी में रचनाएं लिखते हैं. इस कारण इस समय आप भी बेहतरीन ढंग से लिख सकते हैं.
मगर, कभीकभी जब मन उद्वेलित या आक्रोश से भरा हो तब आप किसी भी समय लिख सकते हैं. वैसे जब भी तीव्र संवेग आए उसी समय वैसी ही रचना सृजित कर देना चाहिए. तब ही सृजन का बेहतर समय होता है. तभी रचनाएं उम्दा सृजित होती है.
यह आप पर निर्भर है कि आप किस समय, किस मूड़ में किस तरह की रचना लिखना चाहते हैं. यह अपनी आदत और मानसिक प्रक्रिया या समय की उपलब्धता के हिसाब से तय कर सकते हैं. इस का अपना कोई नियम नहीं हैं. आप सुबह लिखेंगे तो बढ़िया लिखा जाएगा. दिन में लिखेंगे तो अच्छा नहीं लिखा जाएगा. बस, आप के लिखने का मूड़ होना चाहिए. यही पहली व अंतिम बात है.
बुक क्लिनिक – आप की साहित्य से पृथक अभिरुचि के विषय क्याक्या हैं ? जरा इस पर कुछ कहिए.
ओमप्रकाश क्षत्रिय – साहित्यकार भी एक सामाजिक प्राणी होता है. उसे समाज में रह कर अपने कार्य करने होते हैं इसलिए लेखन के अतिरिक्त भी उस की कई रूचियां होती है. मुझे यारदोस्तों से मिलना, उन के साथ यात्रा करना, गप्प मारना और उन का संगसाथ पसंद है. कई बार उन के साथ पार्टी, बाहर की यात्राएं आदि भी करता हूं.
कई बार शिक्षक साथियों के सेवानिवृत्ति पर आयोजित कार्यक्रम का संचालन कर लेता हूं. विद्यालय के कार्यक्रम में भाग लेना मुझे पसंद है. आदरणीय राजकुमार जैन राजन जब भी कोई कार्यक्रम करते हैं उस में भाग लेता हूं. उन का संगसाथ अच्छा लगता है. वे एक जीवंत व्यक्ति, एक बेहतरीन रचनाकार के साथसाथ एक मजबूत इनसान भी है.
इस के अलावा मेरे एक साथी है घनश्याम ठरणा जी उन का संगसाथ अच्छा लगता है. हम शिक्षक जीवन में आपस में अच्छे दोस्त है.
बुक क्लिनिक – आप को अपनी पुस्तक के लिए विचार कहां से मिलते हैं ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – मैं ने पूर्व में कहा है कि पुस्तक किसी रचनाओं को बड़ासा संकलन होती है. इस कारण पहले आप को यह सोचना होगा कि आप किस विषय या विचार पर अपनी पुस्तक लिखना चाहते हैं ? उस में क्याक्या समाहित करेंगे. उस के बाद आप को उस पर विचार करना पड़ेगा ? इस में तथ्य कहां से आएंगे ? तब आप पुस्तक के बारे में कुछ सोच सकते हैं.
चुंकि रचनाकार भी एक सामाजिक प्राणी होता है वहां समाज में रहता है. उस के कार्यव्यवहार उसे प्रभावित करते हैं. वह दूसरों से प्रभावित होता है तो स्वयं दूसरों को प्रभावित करता है. इसलिए एक रचनाकार को विचार अपने आसपास के परिवेश से ही मिलते हैं.
अधिकांश प्रसिद्ध व नामी रचनाकारों ने समाज पर ही लिखा है. वहीं से विचार लिए है. मुशी प्रेमचंद सामाजिक पृष्ठभूमि के लेखक थे. उन्हों ने जो कुछ लिखा वह समाज पर ही लिखा. इसलिए लिखने के लिए परिवेश में बहुत सी सामग्री है. बस एक बार उस तरह की दृष्टि प्राप्त करने की जरूरत है. फिर देखिए आप के सामने लेखन सामग्री का ढेर लग जाएगा.
बुक क्लिनिक – आप ने पहली किताब कब लिखी ? उस समय आप कितने साल के थे ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – जैसा कि मैं पूर्व में कह चुका हूं कि मैं पिछले 35 साल से अधिक समय से लिख रहा हूं. मैं ने कई कहानियां, लेख, लघुकथाएं एवं कविताएं आदि लिखी है. मगर, जहां तक किताब का सवाल है वह इन का संकलन है. एक पुस्तक आप के प्रकाशन से पिछले दिनों प्रकाशित हुई है.
यह बात ओर है कि आजकल एकएक माह में पुस्तक लिखने के पाठ्यक्रम चल रहे हैं. अगर, आप विषय के विशेषज्ञ है तो एक माह में पुस्तक लिख सकते हैं. यह आप पर निर्भर है कि आप किस विषय पर किताब लिखना चाहते हैं ? आप के पास उस पर कितने सामग्री है.
बुक क्लिनिक – जब आप लिख नहीं रहे होते हैं तब आप क्या कर रहे होते हैं ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – यह बहुत बढ़िया प्रश्न है. जब मैं लिख नहीं रहा होता हूं उस वक्त जो कर रहा होता हूं उसे पूरी तन्मयता से करता हूं. कभीकभी जब टीवी देखता हूं तो उस में अच्छी तरह से जुड़ जाता हूं. कई बार तो मेरी पत्नी चकित रह जाती है कि आप टीवी इतनी गौर से क्या देखते हैं.
यही कार्य हर मामले में करता हूं. पूरी तरह डूब कर अपने माहौल को जीने की कोशिश करता हूं. सोचता हूं तो पूरी तरह डूब कर. दुखी होता हूं तो अपने को पूरा दुखी महसूस करता हूं. यात्रा पर जाता हूं तो पूरा मजा लेता हूं.
कई बार साहित्यिक कार्यक्रम में जाने का मौका मिलता है. वहां पर कार्यक्रम में पहले पहुंच जाता हूं. ताकि मेरे अन्य रचनाकार साथियों से मिल सकूं. यानी जो कार्य करता हूं वह पूरी तरह करने की कोशिश करता हूं.
बुक क्लिनिक – आप का परिवार आप के लेखन के बारे में क्या सोचता है ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – हरेक का नजरिया अलगअलग है. पुत्र सोचता है कि पिताजी कुछ न कुछ करते रहते हैं. वही छपता रहता हैं. पुत्री का नजरिया इसी से मिलताजुलता है. बस, दिल पर कोई बात लग जाएगी तो कुछ लिख देंगे. पत्नी को कभीकभी लगता है कि मैं जिस कंप्युटर पर लिखता हूं वह उस की सौतन है. उसे जितनी तन्मयता से लगे रहते हैं. यह देख कर उसे कंप्युटर से जलन होने लगती है.
खैर ! यह तो मजाक की बात थी. पत्नी के सहयोग के बिना मेरा लिखना असंभव है. वह मुझे सुबहसुबह एकडेढ़ घंटे तक एकांत में रहने देती है. उसी की वजह से मैं लिख पाता हूं. नहीं तो मेरे जीवन में बहुत खलल पैदा हो जाता. संभव है मैं लिख नहीं पाता. क्यों कि मेरे मित्र बहुत ज्यादा है. कोई न कोई मेरे घर आता रहता है. इस से मेरे कार्य में व्यवधान पैदा होता है.
मेरे करीबी साथी जानते हैं कि मैं जब लिख रहा होता हूं तब मुझे वे खलल पैदा नहीं करते हैं. इस कारण वे चुपचाप आ कर बैठ जाते हैं. इस वजह से मैं लिख पाता हूं.
बुक क्लिनिक – आप की पुस्तक बनाने में सब से आश्चर्यजनक चीज क्या थी ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – आप कितना भी लिखते हो मगर आप के मन में बस एक ही लालसा रहती है कि अपने लिखे हुए को छपे हुए देखना. विश्व के प्रत्येक रचनाकार की यही ख्वाहिश रहती है कि उस का लिखा हुआ छपे. हाथ में आए. उसे देख कर उसे जितनी खुशी मिलती है उस की कल्पना नहीं की जा सकती है. इसे यूं कहे कि एक मां को अपने पुत्र के जन्म के समय जो खुशी मिलती है वही खुशी एक रचनाकार को अपनी पुस्तक छप कर हाथ में आने पर मिलती है.
बुक क्लिनिक – आप के पास नए रचनाकारों के लिए बेहतर लेखन के लिए कोई सुझाव है या उन के लिए कोई दिशानिर्देश जो आप देना चाहते हैं ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – लेखन का अपना नियम हैं. यह मानव के नियम से अलग नहीं है. आप उसी बारे में अधिकार पूर्वक बोल या लिख सकते हैं जिस के बारे में आप को पूर्ण ज्ञान या अनुभव हो. यदि आप को खेती का अनुभव या ज्ञान नहीं है तो उस के बारे में आप कुछ नहीं कह सकते हैं. अनुभव कार्य से पैदा होता है. जो कार्य आप कर रहे हैं उसे बेहतर और नए तरीके से कर सीखिए. इस से आप को नई दृष्टि मिलेगी.
यही नई दृष्टि आप का नया ज्ञान या अनुभव देगी. इसी अनुभव को आप अच्छे से व्यक्त कर सकते हैं. इसी पर लिखना सब से अच्छा होता है. आप ने देखा होगा कि अधिकांश रचनाकार अपने कार्यक्षेत्र या दायरे में बहुत बढ़िया लिख पाते हैं.
इस कारण, पहली बात यह ध्यान में रखे कि आप जो भी कार्य करे उसे पूरी तन्मयता से करें. उसे पूरी लगन व उत्साह से करें. पूरी तरह सीखें. उसे आत्मसात करें. तब उस पर लिखें.
एक बेहतर परीक्षार्थी जिस ने संभाग में उच्चस्थान पाया है वह अपनी परीक्षा की तैयारी पर बेहतर लिख सकता हैं. उसे अपने ज्ञान या अनुभव पर लिखने के लिए बहुत कुछ होता है.एक किसान अपनी खेतीबाड़ी की बारिकी पर बेहतर लिख सकता हैं. जब कि एक अनाड़ी या अनुभवहीन व्यक्ति खेतीबाड़ी पर उतना बेहतर नहीं लिख सकता हैं.
इसलिए उसी पर लिखना चाहिए जिस पर आप को अधिकार हो . आप को उस क्षेत्र की जानकारी, अनुभव और पूरा ज्ञान हो. तभी लेखन सार्थक होता है.
बुक क्लिनिक – आप की अगली पुस्तक कब लिख रहे हैं ?
ओमप्रकाश क्षत्रिय – मेरी अगली पुस्तक मैं लिख रहा हूं. यह कम से कम 20 दिन में लिख कर तैयारी हो जाएगी. इस में मैं अपने अनुभव के आधार पर बेहतरीन रचनाएं सकंलित करने की कोशिश करूंगा. ताकि पाठकों को बेहतर पुस्तक प्राप्त हो सकेगी. प्रतिक्षा कीजिए
Review Interview With Omprakash Kshatriya.