Anubhav Chunav Ka BY (Sadanand Mishra)

100.00

“अर्थशास्त्री, सम्पादक और पत्रकार डॉ. सदानन्द मिश्र, ने गावं की राजनीति के क्षेत्र में एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में प्रवेश किया, लेकिन ज्यों-ज्यों वैचारिक सैद्धान्तिक प्रश्नों, समस्याओं और विमर्शों की चुनौती उनके समक्ष खड़ी होती गयी, उनकी लड़ाकू प्रवृत्ति, चिन्तन-प्रक्रिया, मूल्य चेतना और उनके विषय बोध का विस्तार होता रहा। इस क्रम में डॉ. मिश्र के अन्दर संघर्षशील और क्रान्तिकारी जीवन-मूल्यों की परिधि का विस्तार भी होता गया, जिसका समवेत रूप ‘अनुभव चुनाव’ में अभिव्यक्त हुआ है। इस पुस्तक का उद्देश्य उसकी संवेदना, उसकी सम्प्रेषणीयता, उसकी उदात्तता और पाठकों तथा समाज को जगाने, झकझोरने की शक्ति भी है। इस पुस्तक में मानवीय मूल्यों की स्थापना करते हुए उसके अन्दर के इन्सान को भी जगाने का प्रयास किया गया है। नये समाज की संरचना के तत्व भी इनमें मौजूद हैं। प्र्रस्तुत पुस्तक में छटपटाहट भी है। इस पुस्तक में समाज और आदमी, आदमी और समाज के बीच के सम्बन्ध को भी बखूबी प्रदर्शित करने का लेखक द्वारा प्रयास किया गया है। लेखक द्वारा समाज के यथार्थ का सच पात्रों के यथार्थ से कहीं न कहीं मुठभेड़ करते हुए दिखाई दे रहे हैं। अन्याय, मठाधीशी जैसी तमाम बुराईयों के प्रति आज भी जो लड़ाई है, उसे पुस्तक में बखूबी प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है। यहां आपको यह पढ़ने को मिलेगा कि समाज के मतदाता किस प्रकार प्रत्याशियों को बरगलाते हैं। प्रत्याशी अपने समर्थन में किस प्रकार लोगों से झूठे वायदे करके वोट को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक चुनावी सरगर्मियों के बीच लेखक के निजी अनुभव पर आधारित सत्य संवादों और लोगों के विचारों का संग्रह है। इस पुस्तक को डॉ. मिश्र ने समाज के शुभचिन्तकों, विद्वानों, समाज के प्रति सोचने-विचारने वालों के लिए प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक डॉ. मिश्र द्वारा समाज की समान धर्माओं की सीमाओं और शक्तियों की पहचान करके लिखी गयी है। डॉ. मिश्र अपने प्रतिपक्ष को अच्छी तरह जानते हैं। इसीलिए इनकी पक्षधरता अमूर्त्त नहीं है। देश, समाज और गांव की अमानवीय अवस्थाओं से आमने-सामने होते हुए उन्होंने अक्षरों एवं शब्दों के प्रति और उसी में अपनी निष्ठा व्यक्त की है। पुस्तक में सच को प्राप्त करने के लिए कठिन और जटिल आत्मसाक्षात्कार से गुजरना पड़ा है। तथ्यों और संवादों को अनुभव की आंच में पकाकर श्रेष्ठ रचना की गयी है। सच्ची घटना को लेखबद्ध करने के लिए लेखक को जटिल से जटिलतम दौर से होकर गुजरना पड़ता है, स्वयं को घटनाओं के अनुभव की आंच में पकाना पड़ता है। इस पुस्तक को पढ़ने से एक आवेगयुक्त प्रतिक्रिया हमारे सामने आती है। डॉ. मिश्र पुस्तक में समाज विरोधी, मानवता-विरोधी, फन पटकते हुए दो मुंह विषधरों की पहचान करते हैं। जातीयता का चेहरा लगाए हुए विखण्डनकारियों की भी पड़ताल करते हैं। वे तथाकथित समाज के बुद्धिजीवियों की भी शिनाख्त करते हैं। इस लेख में मानवता विरोधी गतिविधियों को भी लेखक द्वारा चिन्ह्नित किया गया है। लेखक ने अपने आपको काल और समाज के प्रति भी जवाबदेह माना है। यह जवाबदेही ही डॉ. मिश्र को विशिष्ट व्यक्ति बनाती है। डॉ. मिश्र की विचारधारा उनको वैचारिक धरातल को स्पष्ट करती है। इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आपको ऐसा लगेगा कि डॉ. मिश्र सही राजनीति की तलाश कर रहे हैं। विकल्प की तलाश करते हुए वे जनचेतना को जागृत करने का प्रयास करते हुए नजर आ रहे हैं।
हिन्दी जगत में कविता, उपन्यास, नाटक, कहानी और आलोचना पर केन्द्रित तमाम विद्वानों ने महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन इस तरह की रचना से सम्बन्धित कार्य रचना बहुत ही कम उपलब्ध है। इस रचना में समाज का स्वतंत्र आवलोकन लेखक द्वारा किया गया है। इस पुस्तक के लेखक की अपनी स्वतंत्र सत्ता है, अपना स्वतंत्र रूप है, अपना स्वतंत्र प्रभाव है और अपना स्वतंत्र वर्गीकरण है। इसमें लेखक द्वारा अपनी अनुभूतियों को विस्तार देते हुए सामाजिक राजनीतिक जीवन के सन्दर्भों को स्पष्ट किया गया है। इस रचना में लेखक का व्यक्तित्व किसी-न-किसी रूप में झलकता हुआ नजर आता है। इस रचना में यह बात साबित हो गयी है कि आत्म का सम्बन्ध समाज से है। निजत्व ऊपर से नहीं टपकता है। यहां पर लेखक पूरी तरह से अने कथ्य के प्रति आश्वस्त है और अपनी भावनाओं के प्रति समर्पित भी है। व्यक्तिगत जीवन के दृष्टांत से यह रचना समाज को एक नया अनुभव और मोड़ देगी। लेखक द्वारा लोगों से किया गया सीधा संवाद इसे और भी लोकप्रिय बनाएगा। यह पुस्तक सामाजिक, राजनीतिक विकास के सन्दर्भों को यथार्थ के धरातल पर केन्द्रित और विवेचित है। डॉ. मिश्र ने रचना की गम्भीरता के बावजूद भाषागत प्रवाहता को बनाये रखा है। इसमें तीक्ष्ण बौद्धिकता दिखायी देती है, लेकिन कला और समाज के अन्तर्सम्बन्धों पर विचार करते हुए डॉ. मिश्र कलाकार की सफलता की कसौटी भी तय करते हैं।
पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद पाठक यह अनुभव करेंगे कि डॉ० मिश्र के यहाँ एक खास बात यह है कि यह कभी भी निराश या पश्तहिम्मती का शिकार नहीं होते। हालात बहुत बुरे हैं, स्थितियां बहुत खराब हैं, लेकिन इन्होंने परिस्थियों के सामने कभी भी समर्पण नहीं किया। हर प्रकार की बुराई और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का जज्बा भी कायम है। यहाँ विपत्तियों में हार न मानने की क्षमता बरकरार है।
‘‘अनुभव चुनाव का’’ प्रचलित अर्थ में कोई आलोचना कृति नहीं है। इसकी भाषा विमर्श मूलक है और इसकी निस्पत्तियां चुनौती पूर्ण है। अगर-मगर अथवा लेकिन-वेकिन या किन्तु-परन्तु, के लिए यहां कोई गुंजाइश बिल्कुल नहीं है। अपनी विश्लेषण प्रक्रिया और अभिव्यक्ति प्रक्रिया में डॉ० मिश्र कोई अन्तर नहीं छोड़ते है। डॉ० मिश्र की टिप्पणियां अन्वेषण से भरी हुई, जोखिम से भरी हुई और बेबाक है। पाठकों के लिए यह काम की चीज है और विमर्शकारों के लिए बेचैनी का सबक भी बन सकती है। हाँ, डॉ० मिश्र की स्पष्ट पक्षधरता और विवेक सम्यक् प्रतिबद्धता इस कृति को अद्वितीय बना देती है। ‘‘अनुभव चुनाव का’’ डॉ० सदानन्द मिश्र की एक गम्भीर कृति है। इस विषय को केन्द्र में रखकर अभी तक कोई महत्वपूर्ण कार्य उपलब्ध नहीं है। उम्मीद है, की इस कृति के प्रकाशन से अध्येताओं, सामाजिक और राजनीतिक राजनीतिकारों को मार्ग निर्देशन में निश्चित ही सहयोग मिल सकेगा।
डॉ० मदन मोहन पाण्डेय
प्राचार्य
श्री शिवा महाविद्यालय,
तेरही कप्तानगंज आजमगढ़”

  • Publisher ‏ : ‎ Booksclinic Publishing 
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • ISBN-13 ‏ : ‎    9789391046606 
  • Reading age ‏ : ‎ 3 years and up
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Generic Name ‏ : ‎ Book

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Dimensions 5.5 × 8.5 cm

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