Ek Aadhyatmik Gyan by (Satyajit Banerjee)
₹220.00
“मैं”एक आध्यात्मिक ज्ञान ‘में आप सभी आदरणीयों को यह अवगत करवाना चाहता हूं कि इस जीवात्मा को परमं सत्य को जानने के लिए केवल और केवल दो ही मार्ग है -एक है मैं और दूसरा है ओ(अर्थात आप) या तो आप स्वयं को जानने के लिए आध्यात्म में प्रवेश कीजिए या फिर उस शाश्वत सत्य आप (ईश्वर) को जानने के लिए ।पर आप सभी आदरणीयों को पता है कि ‘किसी भी सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचने के लिए विधिवत सीढ़ी की आवश्यकता होती है।’ ठीक उसी प्रकार आप सभी आदरणीयों को मैं यह अवगत कराना चाहता हूं ।कि किसी भी जीवात्मा का आरंभ सीढ़ी “मैं” है। और अंत सीढ़ी आप (शाश्वत सत्य) है। जिस मार्ग में आप को “मैं” का पूर्णतः सत्य ज्ञान हो वही आध्यामिक मार्ग सही है। जिसमें चलकर आप को पूर्णतः सत्य “ओ”(आप,अंत)की प्राप्ति होगी।जो सत्य है। जिसमें किसी भी प्रकार का संदेह अथवा शंका नहीं है। सभी आदरणीय पढ़ें और इस “मैं”एक आध्यात्मिक ज्ञान पर विचार विमर्श अवश्य करें।
- Publisher : Booksclinic Publishing (19 October 2022)
- Language : Hindi
- Paperback : 130 pages
- ISBN-13 : 9789355353597
- Reading age : 3 years and up
- Country of Origin : India
- Generic Name : Book
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Description
मैं बचपन से ही लेखन क्रिया में रुचि रखता था और बहुत सारे सवाल मेरे मन में उत्पन्न होते रहता था और आज भी होता है। 2009मैं जशपुर जिला के पंडित जवाहरलाल नेहरू शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्ययन कर रहा था। जनवरी का शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के शाम का समय था करीब- करीब 7:00 बजे से 8:00 बजे रहे थे।मेरे पास एक छोटा सा नोकिया कीपैड मोबाइल था जिसमें टार्च की सुविधा भी उपलब्ध थी। तबीयत ख़राब होने के कारण घर चला गया था और इस दिन वापस आ रहा था।मेरे मित्र मुझे हॉस्टल से लेने के लिए आ रहे थे सायकल से, और मैं उनका कुछ दूरी चलने पर एक पीपल वृक्ष के नीचे बैठ गया और वहीं मुझे एक पेन (लिखने वाला कलम) मिला। शिक्षा के मामले से मैं बहुत कमजोर था क्योंकि उस समय मैं काफी चिंतित और परेशान रहा करता था। मुझे घर की याद आती ही रहती थी जिसके कारण मेरा तबीयत ख़राब हो जाया करता था। क़लम को मैंने उठाया, क़लम नई लग रही थी। उसमें रक्षासूत्र धागा बांधा हुआ था। अंदर में एक कागज़ था, मैंने उस क़लम से कागज़ निकाल लिया। उस कागज में एक संदेश लिखा था कि जब भी इस कलम की टोपी निकाला जाए तो कुछ ना कुछ जरुर लिखें और इसे खुला ना रखें। उस दिन के बाद मानों लिखने की प्रेरणा तेज़ हो गई। पर कहते हैं ना जिस प्रकार व्यक्ति का जीवन होता है उसे उसी के अनुरूप शब्दों की प्राप्ति होती है। उस समय मेरी मानसिक गतिविधियां अनुकूल नहीं थी। ऐ तो हुई मेरी लेखनी आरंभ की प्रतिक्रिया। मैं एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता हूं। पर मेरे माता-पिता और बहनों ने मुझे कभी गरीबी का एहसास होने नहीं दिया। और उस दाता दयाल सतनाम सत्पुरुष पिता जी ने हमेशा दुःख में सुख में सम्भाल किया।बाकी तो आप सभी जानते हैं कि दुःख की घड़ी में सभी स्वार्थी अलग हो जाते हैं।
Additional information
Dimensions | 5.5 × 8.5 cm |
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