Haldighatee Ek Punarsrijan, By (Rajendra Sahni)

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यह बुक भारत के एक राज्य राजस्थान के चितौडग़ढ़ के महान प्रतापी राजा महाराणा प्रताप के राष्ट्र के प्रति अगाध प्रेम और राष्ट्र रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करने देने वाले भारत के वीर सपूत की वीरता की अमिट कहानी है. जो राष्ट्र के प्रति सबको प्रेम करने की प्रेरणा देता है. महाराणा प्रताप की वीरता पूर्ण जीवन सबके लिए एक सबक है. उनके पदचिह्नों पर चलकर हमसब भी राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं. अपने मान सम्मान की रक्षा कर सकते हैं. अपनी मातृ भूमि की सेवा कर सकते हैं.

  • Publisher ‏ : ‎ Booksclinic Publishing 
  • Language ‏ : ‎  Hindi 
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 9789355357946
  • Reading age ‏ : ‎ 3 years and up
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Generic Name ‏ : ‎ Book

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Description

“मैंने यह प्रस्तुत खण्डकाव्य ‘हल्दीघाटी : एक पुनर्सृजन’ भारत के महान वीर योद्धा महाराणा प्रताप के उज्जवल चरित्र पर अपनी योग्यता से आगे बढ़कर लिखने का बड़ा दुःसाहस किया है. चूंकि किसी महान चरित्र के जीवन वृत्त को काव्य रूप देने के लिए एक कवि को काव्य मर्मज्ञ होना जरूरी है, जो कि मैं नहीं हूँ. लिखने को तो लिखा हूँ, परन्तु यह कितना सार्थक हुआ है. इसका निर्णय आप पाठक गण ही कर सकते हैं. महाप्रतापी महाराणा प्रताप पर प्रकाण्ड विद्वान श्री श्याम नारायण पाण्डेय विरचित महाकाव्य “”हल्दीघाटी”” का रसास्वादन तो आप लोग किए ही होंगे.
फिर भी जो लोग समय के अभाव में उक्त महाकाव्य को नहीं पढ़ पाएं होंगे. वे पाठक गण मेरे इस खंड काव्य को पढ़कर परम प्रतापी वीर, अपनी आन -शान -मान स्वभिमान और देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले परम प्रतापी महाराणा प्रताप के शौर्य पराक्रम का दिग्दर्शन कर उनके उदात्त चरित्र से अवगत हो सकते हैं. अपने अंदर भी देश की रक्षा करने की भावना पैदा कर सकते हैं. आज के परिवेश में देश के महान वीर योद्धाओं की जीवनी पढ़ना नितांत आवश्यक है. हमारे वीर पूर्वजों ने अपने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण गंवाएं, विघ्न वाधाओं को सहे, विविध परिस्थितियों का डटकर सामना किये. परिस्थतियों पर विजय पायी. दुश्मनों से युद्ध किए लेकिन उसके सामने घुटने नहीं टेके और न उसकी अधीनता स्वीकार की. उसी तरह हमे भी अपने अंदर के योद्धा को जगाना होगा. जगाए रखना होगा. देश की शान और अपना स्वभिमान बचाने के लिए. हमे भी दुश्मनों से युद्ध करना होगा. तब जाकर हम और हमारा भारत सुरक्षित रहेगा और हमलोग शान से रहेंगे. मेरी रचनाओं को लिखने में मेरे मार्ग दर्शक एवं सहायक आदरणीय मूर्धन्य विद्वान साहित्यकार, कवि, नाटककार श्री प्रमोद प्रियदर्शी जी का मैं कृतज्ञ हूँ. मेरा उनको शत शत नमन है. साथ ही शिक्षाविद आचार्य पंडित श्री रामचंद्र शास्त्री जी को मेरा कोटि कोटि नमन है.मैं प्राचार्य एवं एक नयी सुबह पत्रिका के यशस्वी, प्रकाण्ड विद्वान श्री दशरथ प्रजापति जी का आभारी हूँ. प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि वाल्मीकि जी का आदर करता हूँ. वरिष्ठ साहित्यकार, कहानीकार स्वर्गीय उमाशंकर लोहिया जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ. कवि श्री जितेंद्र झा आजाद जी एवं मधुर कंठ के धनी, कवि गीतकार श्री मधुकर जी को तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ. और मैं अपने सभी उन साहित्यकारों के प्रति भी कृतज्ञ हूँ जिनका मुझे मार्ग दर्शन मिलता रहता है. अंत में सविनय निवेदन है कि आप लोग इसी तरह मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे. और मेरी किसी बात को आप अन्यथा न लेंगे. धन्यवाद !”

Additional information

Dimensions 5.5 × 8.5 cm

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