Nandani Bai, By(Jitendra Kumar Anchla)

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प्रिय् पाठकगण।
इस पुस्तक में एक साथ कई कहानियों का संग्रह है। जो समाज में घट रही घटनाओ और स्थितियों से परिचित कराता है। कहानी मार्मिक, सामाजिक, सरस वेदना पूर्ण, और रोमांसयुक्त है। पात्र के त्याग, तपस्या और विवशता तो निमर्म ह्दय को द्रवित करने वाला है।
लेखक समाज के चतुर वर्ग द्वारा सीधे-साधे व्यक्ति पर दुव्र्यवहार और अनदेखा को कुठाराघात किया है। समाज को एक आईना रूपी कहानी प्रस्तुत किया गया है।
आगे भी इसी तरह की कहानियों का दूसरा संग्रह जल्द ही प्रस्तुत किया जायेगा। नाटक, एकांकी, उपन्यास, कविता भी पाठक के लिए उपलब्ध है, जिसे जल्द ही प्रकशित किया जायेगा। आदेश के उपरांत किसी व्यक्ति का जीवनी भी लिखा जाता है। ”

  • Publisher ‏ : ‎ Booksclinic Publishing 
  • Language ‏ : ‎Hindi
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 9789355359322
  • Reading Age ‏ : ‎ 3 Years And Up
  • Country Of Origin ‏ : ‎ India
  • Generic Name ‏ : ‎ Book

 

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Description

“मैं पश्चिम बंगाल के कोलकाता अस्पताल में सन 1985 ईस्वी में जन्म लिया था।मेरे पिता गयानंद शर्मा कोल इंडिया लिमिटेड में ओ. एस .के पद पर कार्यरत थे। वह एक सामाजिक विचारधारा रखने वाले ,हंसमुख प्रतिभा के धनी ,चिकित्सक, कोल इंडिया लिमिटेड में एच .एम.एस .के यूनियन लीडर (सचिव) थे। राजनैतिक पहुंच बिहार से बंगाल तक अच्छी थी
।कहा जाता है कि बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के करीबी एवं मुख्यमंत्री माननीय श्री लालू प्रसाद यादव, माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी तथा रामविलास पासवान जी से घनी मित्रता होते हुए भी उनमें नाम मात्र के भी गुमान नहीं था। अपनी जीवन साधारण वेशभूषा और अभाव में गुजार दिए थे। वे बिहार के जेपी आंदोलन में जेल भी गए हुए थे। मैं बचपन में अक्सर उनके मुंह से स्वतंत्रता सेनानी और उनके गुदड़ी के लाल नेता का चर्चा सुनता था जो बाद में गरीबी के सिवाय कुछ नहीं हासिल किये थे । पहले के जमाना और आज के नेता में काफी अंतर दिखता है । यूं कहूं तो मैं एक विशाल बरगद का एक टहनी हूं ।मैं पिता के अपार स्नेह में पल्ला- बढ़ा। जिसने अपने लिए कपड़ा नहीं पहनते हुए हमारे परिवार के जरा भी कष्ट होने का एहसास नहीं होने दिए ।वे काफी निडर, स्वाभिमानी, संघर्षशील तथा समाज के लोगों को निस्वार्थ भावना से मदद पहुंचाने तथा अपनी वाणी में बांधकर समाज को एकजुट रखने की कला रखते थे। मैं कम समय में उनके साथ बहुत गरीब से गरीब और अमीर से अमीर लोगों को आते -जाते देखा था। मैं शिष्टाचार और अनुशासन में रहकर अपना बचपन बिताया तथा इंटरमीडिएट प्रथम सत्र तक पिताजी के रहते किया था। पिताजी मुझे अच्छे से पढ़ाई करा कर आगे बढ़ाना चाहते थे परंतु भगवान को मंजूर नहीं था और मुझे 16 वर्ष की उम्र में ही 30/3/ 2002 को इस दुनिया से छोड़कर चले गए।फिर मैं मुख्य मार्ग से विचलित होकर रह गया ।पर कम पढ़े होने का दुख मेरे दिल में था। मैं पुणः अध्ययन करना प्रारंभ किया तथा अपने शैक्षणिक क्षुधा को कुछ हद तक शांत किया। मुझे मुंशी प्रेमचंद जी के कहानी पढ़ना बहुत अच्छा लगता था और मैं मन ही मन उनको गुरु जी भी मानता था। अतः मैं कहानी लिखने का प्रेरणादायक अपने पिताजी एवं गुरु स्वरूप मुंशी प्रेमचंद जी को मानता हूं। मेरे पिताजी और माताजी बिहार से थे। फिर मैं बिहार आकर स्थाई हो गया ।मेरे इस कहानी संग्रह नंदनी बाई में एक नेक लड़की को इसी समाज के दरिंदा ने उसे वेश्या बनने पर मजबूर करता है और फिर वह समाज के नेक इंसान जो काफी पढ़ा- लिखा होता है ;उससे प्रेम कर शादी करता है तथा समाज के मुख्यधारा से जुड़कर अपना जीवन को बंद पिंजरे की पक्षी की तरह आजाद करते हुए बेहतर जीवन जीना शुरु कर देती है। जो एक बिल्कुल काल्पनिक कहानी है। दूसरी कहानी स्वतंत्रता सेनानी की भूख में आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वालों को अनदेखा किया गया है तथा उनके त्याग और बलिदान को भूलाया गया है। जो संसाधनों के उपभोग का सच्चे अधिकारी हैं। तीसरी कहानी 4 कट्ठा जमीन गांव के लालची और बेईमान लोगों पर कटाक्ष करती है। जो अनपढ़, साफ दिल इंसान तथा कमजोर लोगों पर जुर्म को दिखाता है और अपना उल्लू सीधा कर उसे किसी दूध में पड़े मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देता है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एकांकी में नए और पुराने जमाने की सोच और टिप्पणी की गई है। जिसमें बेटियों की प्रशंसा और उसे कंधे से कंधे मिलाकर पुरुषों के कार्यों में सहयोग करने वाली कही गई है तथा नारी भ्रूण हत्या को रोकने का प्रयास भी किया गया है। जिसमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का बड़ा योगदान बताया गया है ।धन्यवाद।”

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Dimensions 5 × 8 cm

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