Nimisha , (kaavy-Sangrah) BY (Sachidanand Singh “Mohan”)

160.00

“सर्वथा ध्वंसरहितं सत्यपि ध्वंसकारणे।
यद् भावबन्धनं यूनोः स प्रेमा परिकीर्तितः।।
प्रेम नष्ट होने का कारण हो फिर भी प्रेम नष्ट न हो ऐसी स्थिति का नाम प्रेम है।
निश्वार्थ निर्लोभ निष्काम भाव से प्रेम करिए प्रेम संसार का सबसे पवित्र बंधन है और सच पूछिए तो यह बंधन से मुक्ति है प्रेम वो शक्ति है जो आपके लिए हर बंधन तोड़ सकती है।
साहित्य और प्रेम का अन्योनाश्रय सम्बन्ध है एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती संवेदना ज्ञान की शीतल आँख है साहित्यकार की सांस है जब आँखे बादलों की किताब में सागर का आलेख पढ़ती है जब जलते हुए दीये को देख कर तारों का अनुवाद लिखा जाता है जब किसी के उदास चेहरों को देखकर बुद्ध के उदासी का अवसाद होता है और उन उदास चेहरों की झुर्रियों में पुरे विश्व का दर्शनशास्त्र पढ़ा जाता है तब एक कलमकार और साहित्यकार का जन्म होता है
जब एक कवि रसराज के तरीके से कलियों के अँगुठन को खोलता है तब धरती पर वसंत का राज्यारोहण होता है शब्द भाव के मोहताज होते है और जब शब्द कम पर जाती है तब आँखे बोलती है रोम रोम बांसुरी बन जाती है और अंग अंग में महारास होने लगता है तब प्रेम में ओतप्रोत कविताओं का शाब्दिक चित्रण होता है ! साहित्य और प्रेम दोनों को एक धागे में पिरोने का काम मैंने किया है। मेरे जीवन की छोटी सी उपलब्धि और प्रेम से ओतप्रोत मेरी यह काव्य संग्रह आपको समर्पित है – निमिषा”

  • Publisher ‏ : ‎ Booksclinic Publishing 
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 130 pages
  • ISBN-13 ‏ : ‎    9789390871889 
  • Reading age ‏ : ‎ 3 years and up
  • Country of Origin ‏ : ‎ India
  • Generic Name ‏ : ‎ Book

100 in stock (can be backordered)

SKU: book637BCP Category:

Additional information

Dimensions 5.5 × 8.5 cm

Reviews

There are no reviews yet.

Only logged in customers who have purchased this product may leave a review.