Samaajvaad Saamyvaad Mulath Bhaarateeya Vichaardhaaraa. BY (Ram Dular Singh ” Viplavee “)
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सारा जहाँ अनेक बहुविध विचारों, परम्पराओं एवं संस्कृतियों से ओत-प्रोत है। सबके, सभी देशों के अपने अलग-अलग विचार एवं अलग-अलग संस्कृतियाँ हैं। आज सारा संसार ग्लोबलाइजेशन के कारण सिकुड़ता जा रहा है, किन्तु उसके विचार बढ़ते जा रहे हैं। जिस प्रकार वैज्ञानिक विकास से दुनिया छोटी होती जा रही है, उसी प्रकार विचारों का विकास बड़ी तेजी से बदलाव ला रहा है। हमारे अनजाने ज्ञान-विज्ञान-धर्म एवं समाज को दुनिया के दूसरे लोग जानने व समझने लगे हैं और विज्ञान के तीव्र विकास के नाते आज का युग ज्ञान-विज्ञान के विस्फोट का युग बन गया है। इण्टरनेट एवं कम्प्यूटर ने इस विस्फोट को आसान बना दिया है। दुनिया की कोई भी बात दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक तुरत-फुरत क्षणों में पहुँचायी जा रही है और ऐसे समय में कोई भी विचार स्वदेशी है या विदेशी, पाश्चात्य (पश्चिमी) है या पौर्वात्य (पूर्वी) इसका कोई विशेष महत्व नहीं रह गया है।
- Publisher : Booksclinic Publishing (5 January 2023)
- Language : Hindi
- Paperback : 64 pages
- ISBN-13 : 9789355356376
- Reading age : 3 years and up
- Country of Origin : India
- Generic Name : Book
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Description
“राम दुलार सिंह विप्लवी एक परिचय
राम दुलार सिंह विप्लवी का जन्म 1957 में ग्राम-कोदोचक, तहसील – चकिया, जिला – वाराणसी (अब जिला चन्दौली ) उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र में हुआ। आप काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1979 में एम ए (संस्कृत), 1981में एम एड तथा बाद में 1989 में डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से हिंदी से एम ए किया। आपने 1981 से 1985 तक रेणुपावर हायर सेकंडरी स्कूल रेणुसागर, सोनभद्र में, 1986 से 2000 तक विद्युत परिषद इं. कालेज और सन् 2000 से मार्च 2017 सेवानिवृत्ति तक विद्युत परिषद राजकीय इं. कालेज एन टी पी सी टाण्डा, विद्युत नगर जिला फैजाबाद (अब अम्बेडकर नगर) मे कार्यरत रहे।
राम दुलार सिंह विप्लवी आधुनिकतम क्रांतिकारी विचारधारा के पोषण, आम जनता के पक्ष मे खड़े रहने वाले तथा राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक मुद्दों पर अपना बेबाक विचार रखते रहे हैं। अपने सम्पूर्ण अध्यापकीय जीवन में निरन्तर शिक्षण कार्य में विशिष्टता रखते हुए समाजवादी विचारधारा के साथ छात्र हित एवं शिक्षा हित में निरन्तर अग्रणी भूमिका निभाते रहे हैं और छात्रों की उन्नत चेतना के निर्माण हेतु हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं।
लेखक का मन हमेशा इस बात से उद्वेलित रहा है कि आखिर दुनिया में शारीरिक श्रम करने वाले लोगों को वे सुविधाएं नहीं मिल पातीं जिनके अधिकारी वे रहे हैं, जबकि कुछ शोषक वर्ग हैं, जो बहुत कम या नहीं के बराबर काम करके भी दुनिया भर के सुखों का उपभोग करते हैं। आखिर ऐसा क्यों?? इसीलिए आम जनता की इस पीड़ा को सामने रखकर शोषण विहीन समाज वाले समाजवादी – साम्यवादी विचारधारा के समर्थन में इस ग्रंथ की रचना लेखक द्वारा की गई है। और लेखक का यह स्पष्ट विचार है कि साम्यवाद के बिना समस्त आम जनता को रोटी-कपड़ा-मकान और स्वास्थ्य एवं शिक्षा की व्यवस्था संभव ही नहीं है।
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Additional information
Dimensions | 5 × 8 cm |
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