Abhivyakti by Muktinath Tripathi
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आपकी ‘अभिव्यक्ति’ जब ‘कविता-कामिनी’ का कलेवर सजा, बल खाती, इतराती, मस्त गयन्दी-गति से गमनशील होती है, तो समीक्षक का मन, विवश हो, उसके सम्मोहन से सम्मोहित, कुछ बोलने को ‘वाह- वाह’ कर, मचल उठता है। मैं भी मचल उठता हूँ, बोलने के लिए—-
वाणी की, वीणा से झंकृत, हो वाणी की, फुलझड़ियाँ।
भव्य भावना, जोड़ रही है, भावों की, मणि-लड़ियाँ।
हैं अलंकार, रस छंद यहाँ, भावों में है, आनंद यहाँ।स्वर-सुमन लिए, मकरंद यहाँ, गति मस्त गंभीर, गयंद यहाँ।
आपकी ‘कविता-कामिनी’ की ‘काव्य- कुसुम-वाटिका’ में भाव-भ्रमरावलियों के नेह-स्नेहिल-स्वर-सुरस-सिक्त-
शब्द-सुमनों के आकर्षण, अनायास ही साहित्य-जगत में, भ्रमणशील साहित्यानुरागियों के चित्तों को, आकृष्ट कर लेते हैं।
मृदुल भाव के सुरस -पाग में पगे, शब्दों की सुरस पदवालियाँ, शुष्क-हृदय के मरुस्थल में, नंदन का कल्पवृक्ष संरोपित कर, सच्चिदानंद का अधिष्ठान, बना देती हैं।
अफशोस ! अपनी अदृश्य क्षमता से अनजान, आप अपनी रचना, ‘कवियों की मनाभिव्यक्ति’ में हताश दिखाई देते हैं——-
टूटे मन से कोई रचना बनती नहीं,
बन भी जाए तो समीक्षित होती नहीं,
पन्नों पर जब शब्दों से लिखता हूँ,
पन्नों पर समेटता हूँ, पर रचना संवरती नहीं,
“कवियों की मनाभिव्यक्ति”
ऐसी ही हताश अवस्था आँग्ल-भाषा के सर्वश्रेष्ठ महाकवि, ‘मिल्टन’ (Milton) की भी, हो गई थी, जब वह अपने ‘कवित्व-प्रतिभा’ के उत्कर्ष के समय, अपने जीवन के अर्धांश में, अंधत्व को प्राप्त कर, हताशा का शिकार हो गये थे।
“When I consider how my light is spent,
Ere half of my days in this dark world and wide,
And that one talent which is death to hide
Lodged with me useless though my soul more bent,
To serve there with my Maker and present,
My true account, lest He returning chide,
“Doth God exact day labour, light denied ?”
Milton
महान कवियों की यह परंपरा है कि वे अपनी क्षमता को निम्न स्तर की आँकते हैं। जब महाकवि तुलसी यह कहते हैं कि—
“कवित विवेक एक नहिं मोरे।
सत्य कहहुं, लिख कागज़ कोरे।”
कबीर भी कहते हैं—
“मसि- कागज छुयो नहीं, कलम गह्यो नहिं हाथ।”
तात्पर्य यह की अपने को तुच्छ प्रकट करने वाले ये महाकवि, साहित्य-जगत के ‘दिवाकर’ हैं ।भले ही अपने को ये, टिमटिमाता हुआ तारा बता रहे हों। इस परंपरा के आप भी पथिक हो गये हैं।
Milton calls -A good book- “A precious life blood of a master spirit”
यह परिभाषा प्रस्तुत पुस्तक पर, सटीक स्थापित होती है।
परिष्कृत शैली में लिखी गई प्रस्तुत पुस्तक, कवि की सर्वोच्च उपलब्धि है, और उन महान कविताओं में गिनी जाएगी जो, हिंदी- साहित्य में प्रतिष्ठित हो चुकी हैं।
इनकी ‘वैयक्तिकता’ में ‘सार्वभौमिकता’ है।इन प्रस्तुतियों की शैली, विस्तृत एवं समृद्ध है। कविता की इमेजरी (imagery) कोमल तथा गूढ़ है । कमनीय काव्यात्मकता का प्रयोग, बहुत ही चातुर्यपूर्ण एवं रम्य है । विचारों की अभिव्यक्ति हेतु, इनकी भाषा में विशाल क्षमताएँ विद्यमान हैं। इनकी कविताओं में, कुछ ऐसे तत्व सन्निहित हैं, जो सबको प्रभावित करते हैं-वैज्ञानिक स्वयँ को समझा हुआ, जानकर आनंदित होता है, संदेह में दबा, कुचला व्यक्ति, अपने कष्टों की, कवि द्वारा सुंदर एवं शक्तिशाली अभिव्यक्ति पाता है, और एक प्राचीन अंधविश्वासी, धार्मिक विश्वास की, अंतिम विजय से संतुष्ट होता है । विज्ञान एवं आध्यात्मिक-विश्वास के मध्य विरोध को तोड़ने में, कवि समर्थ है।
इनकी प्रस्तुतियों में वह प्रवाह है, जो उच्च कोटि की उत्साह पूर्ण भावना को, किसी शानदार कथानक के रूप में, प्रस्तुत करता है, तथा कविता को सुव्यवस्थित छंद बद्ध करता हुआ, निश्चित उद्देश्य लिए हुए, महान संदेश देता है, ।इनकी प्रस्तुतियाँ शानदार कविता का स्वरूप लिए, निश्चित उद्देश्य लिए हुए, किसी महान कथानक को उच्च शैली में वर्णित करने की क्षमता रखती हुई, ‘संबोधनगीति’ (Ode) का आभास कराती हैं।इनके काव्य का विषय उच्च एवं गौरवशाली है। जीवन के ऊपर कला की श्रेष्ठता, सांसारिक वस्तुओं की क्षण भंगुरता तथा कला की अमरता, इनकी प्रस्तुतियों में शाश्वत प्रतिबिंबित है। इनकी प्रस्तुतियों में गेयता है। कविता की भावनाओं एवं छवियों में असामान्य प्रवाह अनवरोध प्रवाहित होता है।
‘कविता-कामिनी’ की सज्जा में, रस- छंद और अलंकारों का प्रयोग, काव्य -कलेवर में, सहजता प्रदान करता है। ‘कविता- कामिनी’ का श्रृंगार, सौंदर्य-प्रसाधन से बोझिल नहीं है ।
कवि महान कवियों की परंपरावादी प्रतीकों की ‘लीक’ से हट, अपना प्रतीक दे, अपनी ‘लीक’ स्वयँ गढ़ता है। उदाहरणार्थ, बिहारी किसी नायिका के नेत्रों को, “कानन-चारी नयन मृग” बतलाकर (नायिका के विशाल दृगों को कर्ण तक स्पर्श करा, ‘विशालाक्षी’ बता, नेत्रों को ‘मारक’ बतलाते हैं) नायक में नायिका के प्रति आकर्षण उत्पन्न कराते हैं–
“खेलन सिखए अलि भलैं, चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी, नैन-मृग, नागर नरन शिकार।”
“अनियारे दीरघ दृगन, किती न तरुनि समान।
वह चितवनि औरे कछू, जिहि बस होत, सुजान।”
- Publisher : Booksclinic Publishing
- Language : Hindi
- Page : 146
- Size : 5.5×8.5
- ISBN-13 : 9789358239300
- Reading Age : 3 Years
- Country Of Origin : India
- Generic Name : Book
1 in stock (can be backordered)
Description
दीनदयाल उपाध्याय विश्व विद्यालय गोरखपुर से मध्य कालीन इतिहास से परास्नातक, पिता जी के रेलवे में कार्यरत होने के कारण निश्चित पालन पोषण एवम शिक्षा गोरखपुर से हुआ परंतु पैतृक निवास स्थान देवरिया से सदैव ही जुड़ा रहा।
दादा जी पण्डित धूप सागर त्रिपाठी जी एक शिक्षक थे, इस कारण उनका ध्यान सदैव से ही बेहतर शिक्षण की ओर था, वह मुझे एक शिक्षक के रूप में देखना चाहते थे, जिस कारण मैंने दिग्विजय नाथ डिग्री कालेज से एल.टी.का प्रशिक्षण पूर्ण किया। परंतु शिक्षक न पाने की दशा में एक इंश्योरेंस सेक्टर से जुड़ा रहा एवम सेवानिवृति के उपरांत लेखन कार्य से जुड़ गया, रास्ता मिल चुका है परंतु मंजिल अभी दूर है, इसके पूर्व मेरी विगत वर्षों यादों की कतरन, तृष्णा भिव्यक्ति का प्रकाशन हुआ, जिसके उपरांत मेरी पुस्तक अभिव्यक्ति जो मानवीय मूल्यों एवम संवेदनाओं पर आधारित है, आप सबके स्नेह एवम प्रोत्साहन हेतु आतुर है। जो निश्चित ही आपको प्रभावित करेगा, रिश्तों को सबल बनाने हेतु मानवीय मूल्यों का जीवित होना आवश्यक है।
आप सबके प्रेम स्नेह का आकांक्षी
मुक्तिनाथ त्रिपाठी”मुक्त”
देवरिया उत्तरप्रदेश
Additional information
Dimensions | 5.5 × 8.5 cm |
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